भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्र ( सेक्टर )
आर्थिक गतिविधियों को तीन मुख्य क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है
1. प्राथमिक क्षेत्र
2. सेकेंडरी क्षेत्र
3. तृतीयक क्षेत्र
- प्राथमिक क्षेत्र– प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करके एक उत्पाद बनाना । प्राथमिक क्योंकि यह उत्पाद उन सभी उत्पादों के लिए आधार बनाता है जिन्हें हम बाद में बनाते हैं। इसे कृषि और संबंधित क्षेत्र भी कहा जाता है।
- सेकेंडरी (द्वितीयक) क्षेत्र– औद्योगिक गतिविधि से जुड़े विनिर्माण के तरीकों से प्राकृतिक उत्पादों को अन्य रूपों में बदल दिया जाता है। यह प्राथमिक गतिविधि के बाद अगला कदम है। इसे औद्योगिक क्षेत्र भी कहा जाता है।
- तृतीयक क्षेत्र– ऐसी गतिविधियाँ जो प्राथमिक और सैकण्डरी क्षेत्रों के विकास में मदद करती हैं। ये गतिविधियाँ माल नहीं बल्कि परिवहन, संचार आदि जैसी सेवाएँ पैदा करती हैं। इसे सेवा क्षेत्र भी कहा जाता है।
अर्थव्यवस्था के ये तीनों क्षेत्र एक– दूसरे पर अत्यधिक निर्भर हैं।
सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी): यह किसी विशेष वर्ष के दौरान किसी देश के भीतर उत्पादित सभी तैयार वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य है। यह दर्शाता है कि अर्थव्यवस्था कितनी बड़ी है।
- विकसित देशों में देखा जाने वाला सामान्य पैटर्न यह है कि प्राथमिक क्षेत्र से द्वितीयक क्षेत्र और फिर अंततः तृतीयक क्षेत्र में बदलाव होता है। लेकिन भारत के मामले में, सेवा क्षेत्र की जीडीपी में हिस्सेदारी कई गुना बढ़ गई है और प्राथमिक क्षेत्र की संख्या में भारी कमी आई है।
- लेकिन इसी तरह का बदलाव रोजगार में नजर नहीं आया है। प्राथमिक क्षेत्र अब भी सबसे बड़ा रोजगार प्रदाता बना हुआ है।
- कारण: सेकेंडरी और तृतीयक क्षेत्रों में पर्याप्त नौकरियां पैदा नहीं हुईं।
- इसका मतलब यह हुआ कि कृषि में आवश्यकता से अधिक लोग जुटे हुए हैं। उनमें से कुछ को हटा भी जाये तो उत्पादन प्रभावित नहीं होगा। उन्हें क्षमता से कम रोजगार हासिल है।
- इस तरह की बेरोजगारी उनके मुकाबले छिपी हुई रहती है जिसके पास नौकरी नहीं है और जो बेरोजगार के रूप में स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। इसे छुपी हुई (disguised ) बेरोजगारी भी कहा जाता है।
बेरोजगारी क्या है?
जब किसी व्यक्ति में काम करने की क्षमता और इच्छा होती है लेकिन फिर भी उसके पास कोई काम नहीं होता है।
बेरोजगारी के प्रकार:
प्रच्छन्न (या छुपी हुई) , मौसमी, चक्रीय, दृश्यमान और तकनीकी
- मौसमी बेरोजगारी: उदाहरण के लिए कृषि क्षेत्र में, किसान बुवाई और कटाई की अवधि के बीच बेरोजगार रहते हैं। सरकार ने दीर्घकालिक बुनियादी ढांचा विकास परियोजनाओं के माध्यम से रोजगार पैदा करके समस्या से निपटने की कोशिश की है।
- चक्रीय बेरोजगारी: यह बाजार में मांग और आपूर्ति के उतार–चढ़ाव पर निर्भर करती है। बारिश के मौसम में छतरियों की मांग बढ़ जाती है जबकि अन्य मौसमों में गिर जाती है। इसलिए, छाता बनाने वाले चक्रीय रूप से बेरोजगार रहते हैं।
- दृश्यमान बेरोजगारी: शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में देखी जाती है। एक व्यक्ति में योग्यता और इच्छा होती है लेकिन देश नौकरी के अवसर प्रदान करने में विफल रहता है।
- तकनीकी बेरोजगारी: नवीन तकनीकों द्वारा कामगारों का रोजगार चले जाना।
रोजगार के अवसर कैसे पैदा करें?
- ग्रामीण क्षेत्रों में: दीर्घावधि आधारभूत विकास परियोजनाएं शुरू करके, किसानों को आसान ऋण प्रदान करके, किसानों को फसल सब्सिडी और सिंचाई सुविधाओं जैसे प्रोत्साहन प्रदान करके।
- शहरी क्षेत्रों में: कौशल विकास, उद्यमशीलता विकास, शिक्षा में व्यावसायिकता पर जोर दे कर।
- राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों में से एक, संविधान में निहित कार्य के अधिकार को लागू करते हुए (अनुच्छेद 41) केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 (नरेगा) नामक एक कानून बनाया।
- नरेगा के तहत, उन सभी को जो काम करने में सक्षम हैं और जिन्हे काम की आवश्यकता है, सरकार एक वर्ष में 100 दिनों के रोजगार की गारंटी देती है। यदि सरकार रोजगार देने के अपने कर्तव्य में विफल रहती है, तो यह लोगों को बेरोजगारी भत्ता देगी।
संगठित और असंगठित के रूप में क्षेत्रों का विभाजन
- संगठित: वे उद्यम या काम के स्थान जहां रोजगार की शर्तें नियमित हैं और लोगों को आश्वस्त काम दिया जाता है। ये उद्यम सरकार द्वारा पंजीकृत हैं। वे सरकार के कानूनों का पालन करते हैं। उदाहरण के लिए– कारखाना अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम।
- असंगठित: ये छोटी और बिखरी हुई इकाइयाँ होती हैं जो सरकार के नियंत्रण से बाहर हैं। वे नियमों और विनियमों का पालन नहीं करती। काम के बदले भुगतान कम और अनियमित होता है। रोजगार सुरक्षित नहीं होता । इन श्रमिकों को सामाजिक भेदभाव का भी सामना करना पड़ता है।
आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का संरक्षण और सहायता आवश्यक है।
स्वामित्व के संदर्भ में क्षेत्र
- सार्वजनिक क्षेत्र: सरकार के पास अधिकांश संपत्ति है और सभी सेवाएं प्रदान करती हैं। उदाहरण के लिए रेलवे। इनका मकसद सार्वजनिक और सामाजिक कल्याण है।
- निजी क्षेत्र: संपत्ति का स्वामित्व और सेवाओं का वितरण निजी व्यक्तियों और कंपनियों के हाथों में है। उदाहरण के लिए; टिस्को। इनका मकसद मुनाफा कमाना है।
विभिन्न आधारभूत विकास परियोजनाओं में भारी निवेश की आवश्यकता होती है और प्रतिफल भी बहुत कम होता है। इसलिए निजी क्षेत्र की उनमें निवेश करने की इच्छा कम होती है।
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Class X- Chapter-2 Sectors of the Indian Economy
Indian Agriculture- Problems and Reforms Needed