- मेडिसिन जर्नल लैंसेट द्वारा नए शोध रिपोर्ट, 2015 के रोग रिपोर्ट के वैश्विक बोझ के आधार पर कहा गया है कि भारत स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच के मामले में 195 देशों में से 154वें स्थान पर है।
- भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था होकर भी बांग्लादेश, नेपाल, घाना और यहां तक कि लाइबेरिया जैसे गरीब देशों के नीचे के रैंक प्राप्त करती है जब जनता के लिए स्वास्थ्य देखभाल की बात आती है।
चार्ट 1 पर विचार करें जोकि भारत एवं 14 अन्य देशों को सूचीबद्ध करता है जिनकी भारत की तुलना में स्वास्थ्य देखभाल पहुँच और गुणवत्ता सूचकांक उच्च अंक पर हैं।
- भारत का इस चार्ट में सभी देशों से सबसे अधिक प्रति व्यक्ति आय है लेकिन यह स्वास्थ्य सेवा सूचकांक में सबसे निम्न है।
- बांग्लादेश में प्रति व्यक्ति आय भारत की आधे से अधिक है। फिर भी, स्वास्थ्य सेवा सूचकांक में इन 15 देशों में इसका सातवां स्थान है।
- नेपाल राष्ट्र बांग्लादेश से भी ग़रीब है फिर भी इसका आठवां स्थान है।
Read in English: India’s dismal record in healthcare
- वियतनाम जिसकी जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) प्रति व्यक्ति में इन 15 देशों में से तीसरे स्थान पर है यह राष्ट्र स्वास्थ्य सेवा सूचकांक में पहले स्थान पर है।
- लेकिन शायद सबसे अधिक बताई जाने वाली बात यह है कि लाइबेरिया भारत के एक-सातवें भाग से भी कम प्रति व्यक्ति जीडीपी के साथ स्वास्थ्य सेवा सूचकांक पर भारत से बेहतर है।
ये हेल्थकेयर डेटा कई सवाल उठाते हैं
- ऐसा क्यों है कि कम्युनिस्ट और पूर्व कम्युनिस्ट देश जैसे वियतनाम, कंबोडिया, ताजिकिस्तान, उजबेकिस्तान और किर्गिज गणराज्य स्वास्थ्य देखभाल इतनी अच्छी तरह से करते हैं? क्या साम्यवादी विचारधारा से इसपर कोई फर्क पड़ता है?
- क्या निकारागुआ के बेहतर स्वास्थ्य रिकॉर्ड वामपंथ नियमो का प्रतिबिंब है?
- कैसे नेपाल और बांग्लादेश जैसे देश भारत की तुलना में इतना बेहतर है? क्यों भारत में लोकतंत्र ने सरकार को जनता के लिए स्वास्थ्य पर अधिक संवेदनशील होने के लिए मजबूर नहीं किया ??
- और अंत में, जीडीपी या प्रति व्यक्ति जीडीपी वास्तव में अच्छे हाल चाल का माप है
चार्ट 1 में 15 देशों के जीवन प्रत्याशा और नवजात मृत्यु दर के आंकड़े भी हैं।
- एक बार फिर, वियतनाम जीवन प्रत्याशा में शीर्ष पर उभर आता है तथा भारत नौवे स्थान पर है।
- 15 देशों के बीच नवजात शिशु मृत्यु दर में घाना के साथ-साथ, भारत सबसे पीछे रहता है।
- जहां तक भारत के आंकड़ों से लगता है कि इसके कुछ प्राथमिकताओं में बहुत गलती है, निश्चित रूप से किसी भी समाज में बच्चों के जीवन की रक्षा करने का मुख्य रूप से महत्व होना चाहिए?
हम चार्ट 2 पर आते हैं
- चीन भारत की तुलना में अधिक उन्नत है। 2015 में इसकी प्रति व्यक्ति आय, क्रय शक्ति समता (पीपीपी) 2011 के अंतर्राष्ट्रीय डॉलर में भारत के $ 5,733.50 के मुकाबले 13,572.20 डॉलर थी।
- इसलिए यह तर्क दिया जा सकता है कि चीन के पास भारत के मुकाबले बेहतर स्वास्थ्य देखभाल के सूचकांक होंगे क्योंकि वह बहुत अमीर है और यह बात सच भी है। 2015 में स्वास्थ्य सेवा सूचकांक में चीन का स्कोर 74.2 है, जो भारत के 44.8 से काफी आगे है।
- लेकिन अगर हम 20 साल पहले 1995 तक चीन के संकेतक लेते हैं तो क्या होगा? उस समय, चीन की प्रति व्यक्ति आय (2011 में निरंतर अंतर्राष्ट्रीय डॉलर में पीपीपी शर्तों में) 2,564.10 डॉलर थी, जो आज भारत की प्रति व्यक्ति आय की तुलना में आधे से भी कम है। लेकिन फिर भी स्वास्थ्य सेवा सूचकांक पर चीन का स्कोर 53.7 था जो भारत के मौजूदा स्कोर से कहीं बेहतर था।
- चार्ट 2, भारत के 2015 के आंकड़ों के साथ चीन के 1995 के स्वास्थ्य डेटा की तुलना करता है। इससे पता चलता है कि जीवन प्रत्याशा, नवजात मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर में , 1995 का चीन 2015 के भारत से आगे था। क्या एक साम्यवादी तानाशाह लोकतंत्र की तुलना में अपने लोगों के स्वास्थ्य की अच्छे से देखभाल करता है?
भारत के साथ चीन की तुलना करने पर यह निश्चित रूप से दिखता है| या भारत केवल एक निर्वाचन लोकतंत्र है जिसमे जनता की,वास्तविकता में, नहीं सुनी जाती है|
चार्ट 3 में 15 देशों और चीन के कुल सरकारी व्यय का प्रतिशत के रूप में स्वास्थ्य पर सरकारी व्यय को सूचीबद्ध करता है।
- फिर इसमें भारत एक खराब प्रदर्शन कर नीचे से दूसरे स्थान पर आ रहा है।
- चार्ट इस तथ्य को स्पष्ट करता है कि दूसरे देशों द्वारा दी गयी महत्व की तुलना में भारत सरकार की प्राथमिकताओं की सूची में स्वास्थ्य सेवा की जगह बहुत कम है।
- भारत की 5% की तुलना में चीन अपने बजट का 10.4% स्वास्थ्य पर खर्च करता है। वियतनाम 14.2% और निकारागुआ 24% खर्च करता है। यह चार्ट स्वास्थ्य सेवा सूचकांक में भारत के खराब प्रदर्शन का एक बड़ा कारण बताता है।
अंत में, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि देश के भीतर स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच भी असमान है।
- मिसाल के तौर पर, ऑक्सफैम इंडिया का हवाला देते हुए मिलिंद देओगोंकर का “सामाजिक-आर्थिक असमानता में विश्लेषण और भारत में हेल्थकेयर डिलिवरी पर इसका प्रभाव (2010)” का कहना है कि “एक बेहतर परिवार में जन्मे शिशु की तुलना में एक गरीब परिवार में जन्मे शिशु का बाल जीवनकाल में मरने की सम्भावना ढाई गुना अधिक होती है।”
- ‘निचले स्तर के रहने वाले’ आर्थिक समूह के एक बच्चे की ‘उच्च स्तर के रहने वाले’ समूह के एक बच्चे की तुलना में बचपन में मृत्यु की संभावना लगभग चार गुना अधिक होती है।
- आदिवासी बेल्ट में जनित एक बच्चे की दूसरे समूहों के बच्चों की तुलना में पांचवें जन्मदिन से पहले मरने की सम्भावना डेढ़ गुना अधिक होती है।
- एक पुरुष बच्चे की तुलना में एक महिला बच्चे के पांचवें जन्मदिन पर पहुंचने से पहले मरने की संभावना 1.5 गुना अधिक होती है “।
निश्चित रूप से अब हमारा जीडीपी इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि हम एक मध्यम आय वाले देश बन गए हैं क्या सरकार अब अपने ही लोगों के स्वास्थ्य देखभाल पर और अधिक खर्च कर सकती है?
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