- अफ्रीकन विकास बैंक का 52 वा सालाना सम्मलेन इस बार भारत में आयोजित किया जा रहा है|
- इस सम्मलेन के महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है की इसमें अफ्रीका के विभिन्न देशो के तीन हज़ार प्रतिनिधि भाग ले रहे है|
- इस सम्मलेन में भारत-अफ्रीका सम्बन्धो को मजबूती मिलने की आशा है| भारत के साथ अफ्रीका के सम्बन्ध काफी पुराने रहे है | महात्मा गाँधी ने अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ आंदोलन किया और उसके बाद भारत आकर स्वतंत्रता आंदोलन शुरू किया |
- अफ्रीका के कई देशो ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से प्रेरणा ली | स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) का एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य गुलाम मुल्को को उपनिवेशक देशो से आज़ाद करना भी था | ऐसे देशो में बहुत से अफ्रीकी देश शामिल थे | आज़ादी के बाद अफ्रीका के कई देशो ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया |
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- भारत-अफ्रीका के आर्थिक सम्बन्धो की शुरुआत 1952 में हुई | भारत की टाटा सहित कई कंपनियों ने अफ्रीका के देशो में काम शुरू किया| भारत ने अफ्रीका के क्षेत्रीय सहयोग संगठनो, अफ्रीकन यूनियन, अफ्रीकन विकास बैंक आदि संस्थानों के माध्यम से अफ्रीका के देशो से अपने सम्बन्ध मजबूत करने के प्रयास किये है|
- इस बार के सम्मलेन का एजेंडा अफ्रीका में हरित क्रान्ति लाने में भारत के सहयोग पर केंद्रित है| चूंकि भारत को इस क्षेत्र में अनुभव है और अफ्रीकी देश भारत के इस अनुभव का लाभ लेना चाहते है| अफ्रीका में हरित क्रान्ति लाने के लिए संसाधनों की कमी नहीं है| बस उनके सही तरीके से इस्तमाल की आवशयकता है|
- अफ्रीका में पानी की कमी नहीं है, वहाँ काफी नदिया है| इन नदियों के पानी का सही इस्तमाल किया जाए तो हरित क्रान्ति के लिए ज्यादा दिक्कत नहीं होगी| भारत से हर देश अपनी आवश्यकताओं के अनुसार सहयोग चाहता है| कोई देश खाद-बीजो के मामले में, कोई पानी के मामले में तो कोई उन्नत तकनीक आदि के लिए मदद चाहता है| भारत आने वाले समय में अपनी बढ़ती खाद्य आवशयकताओ की पूर्ती के लिए भी अफ्रीका में निवेश कर रहा है|
- भारत की कई कंपनियों ने अफ्रीका में खेती के लिए ज़मीन लीज़ पर ली है जहा वे दालों सहित कई फैसले तैयार करेंगी| भारत की अफ्रीका में कृषि से जुडी परियोजनाओं में 2003 से 2008 के दौरान हिस्सेदारी 3.3 फ़ीसदी थी जो 2009 से 2015 के दौरान बढ़कर 6 .1 फ़ीसदी हो गयी| जबकि इस दौरान चीन की हिस्सेदारी 6 .1 फ़ीसदी से गिरकर 3.3 फ़ीसदी रह गयी|
- अफ्रीका में भारत की तुलना चीन से की जा रही है| लेकिन हमे यह बात समझनी होगी की चीन एक बड़ी आर्थिक महाशक्ति बन चूका है और उसने अफ्रीका में भारत की तुलना में काफी अधिक निवेश किया है|
- चीन ने अफ्रीका में अपनी आर्थिक उपस्थिति भारत से पहले दर्ज करा दी थी और उसको अब मजबूत बनाया है|
- दूसरा, हमारी और चीन की विदेश नीति में भी फर्क रहा है| चीन की विदेश नीति में व्यापारिक और आर्थिक गतिविधियां अहम् हिस्सा बन गयी है जबकि भारत अपनी विदेश नीति सांस्कृतिक, सामजिक उद्देश्यों के आधार पर त्यार करता है| अफ्रीका के मामले में भी भारत ने चीन को ध्यान में रखकर या उसका मुकाबला करने के आधार पर विदेश नीति त्यार नहीं की है इसीलिए अफ्रीका में चीन से भारत की तुलना नहीं की जानी चाहिए|
- अफ्रीका को लेकर भारत की विदेश नीति में सरकार बदलने के बावजूद कोई विशेष फर्क नहीं आया है| संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार में सिर्फ एक विशेष फर्क देखने को मिला है| संप्रग सरकार के समय विदेश नीति में अफ्रीका के क्षेत्रीय प्रमुखों के माध्यम से सम्बन्ध मजबूत बनाने पर जोर था, वही राजग के समय क्षेत्रीय प्रमुखों की बजाय सभी देशो के प्रमुखों को एक साथ लेकर सम्बन्ध मजबूत किये जा रहे है|
- भारत ने वर्ष 2015 में आयोजित हुए भारत-अफ्रीका सम्मलेन के समय अफ्रीकी देशो को 10 अरब अमरीकी डॉलर का सहयोग दिया था जिसमे से लगभग 7 अरब डॉलर स्वास्थय और शिक्षा जैसे क्षेत्रो में खर्च किये जा चुके है|
- भारत, अफ्रीका में फ्रांस के उपनिवेश रहे देशो में अंग्रेजी भाषा सिखाएं के कई केंद्र स्थापित कर रहा है| इन देशो में भारत ने अंग्रेजी भाषा सिखाने के कई सर्टिफिकेट कार्यक्रम शुरू हुए है| इसके अलावा अफ्रीकी देशो का कई मामलो में भारत के लिए समर्थन महत्वूर्ण है|
- संयुक्त राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद् में सुधारो की बात की जा रही है| यदि सुरक्षा परिषद् में सुधार होते है तो भारत को स्थाई सदस्य बनने के लिए इन अफ्रीकी देशो के समर्थन की जरुरत पढ़ सकती है|
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व बैंक में भी अफ्रीकी देशो की समर्थन की भारत को आवशयकता रहती है जिसमे अफ्रीकी देशो ने समय समय पर भारत का सहयोग किया है|
- इसके अलावा आतंकवाद के मुद्दे पर भी अफ्रीका और भारत के बीच सहयोग की जरुरत है क्योंकि आतंकवाद अब वैश्विक रूप ले चूका है और भारत के साथ साथ अफ्रीका के कई देश भी आतंकवाद के शिकार बनते रहे है|