सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान (Read in English)
इतिहास और पृष्ठभूमि
- 2004 में सुप्रीम कोर्ट के करण जौहर बनाम भारत संघ में देखा गया कि,”राष्ट्रीय गान जो अखबारो में या दस्तावेजी फिल्म में या किसी शो के दौरान प्रदर्शित किया जाता है, उसी समय प्रदर्शनी के बीच मे राष्ट्र गान आने पर दर्शकों से खड़े होने की उम्मीद नहीं की जाती है तथा इससे फिल्म में राष्ट्रीय गान की गरिमा बढ़ने की बजाय अव्यवस्था और भ्रम की स्थिति पैदा होगी।”
- 2006 में, श्याम नारायण चौकसे ने जौहर के मामले के फैसले के खिलाफ संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत एक समीक्षा याचिका दायर की।
- नतीजतन, पूर्व के आदेश को दोबारा याद किया गया और सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले और न्याय की समीक्षा के लिए फैसला किया।
- 30 नवम्बर 2016 को 10 साल के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अंत में समीक्षा याचिका के अपने फैसले में निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं की घोषणा की:
- शीर्ष अदालत ने जब थिएटर में गान बजाया जाता है तब एक संरक्षक के खड़े होने को अनिवार्य कर दिया।
- सिनेमा हॉलो को, जब गान बजाया जाता है तब स्क्रीन पर तिरंगा की एक छवि प्रदर्शित करने के लिए भी कहा।
- शीर्ष अदालत ने आगे स्पष्ट किया कि थिएटर के दरवाजे जब राष्ट्रगान चल रहा हो तब लोगों को इधर-उधर जाने से रोकने के लिए बंद कर दिया जाना चाहिए, लेकिन सिटकनी बंद करने की जरूरत नहीं है।
- सुरक्षा विशेषज्ञों की एक संख्या ने पहले के उस नियम जिसमे राष्ट्रगान के दौरान दरवाजे के बंद करने पर सवाल उठाया था।
- अदालत ने 52 सेकंड तक चलने वाले जन गण मन से नाटक बनाने या पैसा बनाने पर प्रतिबंध लगा दिया है और कहा की राष्ट्रीय ध्वज – तिरंगा जब राष्ट्रगान बजाया जाता है तब फिल्म स्क्रीन पर जरूर प्रदर्शित किया जाना चाहिए।
- थिएटर मालिकों को आदेश को लागू करने के लिए 10 दिन का समय दिया गया था।
- अदालत अनुच्छेद 51 के आधार पर कहता है कि,” प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य है कि वह संविधान का पालन करे और अपने आदर्शों और संस्थानों, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय गान का सम्मान करे। “
फैसले के बाद
- इस फैसले ने एक बहस प्रज्वलित कर दी कि,” क्या राष्ट्रवादी गर्व की एक तेजी से बढ़ रहा एक मुखर ब्रांड नागरिक स्वतंत्रताओं का दम घोंट रही है।”
- सुप्रीम कोर्ट के राष्ट्रीय गान को फिल्म सिनेमाघरों में चलाने के लिए अनिवार्य करने के कुछ दिनों के बाद ही इसने एक याचिका का सामना किया था जिसमे अदालत की कार्यवाही शुरू होने से पहले राष्ट्रगान को अनिवार्य बनाने की मांग की गयी थी।
- शीर्ष अदालत ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इस आदेश को नहीं बढ़ाया जाना चाहिए।
- दस दिनों के बाद सिनेमाघरों में राष्ट्रगान अनिवार्य करने के अपने विवादास्पद आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने एक स्पष्टीकरण जारी किया:
- विकलांग व्यक्तियों के लिए खड़े होना आवश्यक नहीं है।
- जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि विकलांग व्यक्तियों को जब राष्ट्रीय गान एक फिल्म की शुरुआत से पहले सिनेमाघरों में चलाया जाता है तब उन्हें खड़े होने की छूट है।
निष्कर्ष और भविष्य की चिंताएं
- अदालत ने केंद्र सरकार को इसके व्यापक प्रचार के लिए आदेश दिया तथा राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को भी इसे भेजने के लिए निर्देशित किया।
- जाहिर है, यह निर्णय राजनयिक आधारित है कि कोई एक इसे कैसे देखता है लेकिन एक पड़ताल के रूप में यह निंदनीय है ।
- इस गीत को पिछली बार चीन के साथ 1962 के युद्ध के बाद से भारत के सिनेमाघरों में चलाने का आदेश दिया गया था, लेकिन अधिकतर फिल्म देखने वालो ने इसे नजरअंदाज कर दिया जिसके बाद यह प्रथा 1975 में बंद हो गयी
- यह आदेश हिंदू समूहों को जो राष्ट्रवाद के एक कठोर ब्रांड पर जोर दे रहे हैं उन्हें प्रोत्साहित करेंगे जिसका कई लोगो ने सिर्फ एक असहमति पर अंकुश लगाने के साधन के रूप में विरोध किया है।
- इससे भी राष्ट्रवादी सक्रियता की एक उभरती लहर पर बहस होने की संभावना है जिसमे कभी- कभी क्रिकेट मैच और फिल्मी सितारों पर भी झगडे देखे जाते है।
- हालांकि, देश के बुद्धिजीवियों के बीच एक बहस शुरू हो गयी है। कई लोगों का कहना है कि सिनेमा हॉल में राष्ट्रीय गान के लिए खड़े होने के लिए जनता को मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।
- इसके अलावा, एक वयस्क या एक्स-रेटेड फिल्म के शुरू होने से पहले राष्ट्रीय गान के लिए लोगो को खड़ा होने के लिए कहना विचित्र होगा।
- इसके अलावा,कुछ राज्यों में पहले से ही राष्ट्रीय गान फिल्मों से पहले चलाया जाता है जैसे- महाराष्ट्र। लेकिन उपाय अक्सर विवादास्पद होते है, राष्ट्रगान के लिए खड़ा नहीं होने के लिए लोगो को पीटने के उदाहरण उपलब्ध है।
- हाल ही में, अक्टूबर में, एक जोड़ी ने गोवा में एक सिनेमा में आदमी को राष्ट्रगान के दौरान खड़े नहीं होने पर उस पर हमला कर दिया, सिर्फ यह पता करने के लिए कि वह लकवाग्रस्त है तथा एक व्हीलचेयर पर है।
- सुप्रीम कोर्ट के लिए व्यक्तिगत स्वतंत्रता की हंसी करने के लिए यह बहुत बुरा है।
- एक मुद्दे पर मनमानी के रूप में सिनेमा हॉल में लोगो को क्या किया जाना चाहिए क्या नहीं यह भयानक है।
- अदालत ने कहा है कि जब राष्ट्रीय गान बजाया जाता है या सुनाई देता है या गाया जाता है तब सम्मान दिखाने के लिए लोग कानून से बंधे हुए है लेकिन कई मूवी देखने वालों ने कहा कि यह निर्देश हस्तक्षेप करने वाला है तथा देशभक्ति को बढ़ावा देने में शायद ही उपयोगी है।
- अदालत ने एक बिंदु का उल्लेख किया है जो अपमान की रोकथाम से परे चला जाता ,राष्ट्रीय सम्मान अधिनियम 1971 के तहत बताते है कि कोई फिल्म, नाटक या किसी भी तरह के शो या शो के हिस्से के रूप में राष्ट्रीय गान नहीं कर सकते हैं।
- सार्वजनिक व्यवहार क्या होना चाहिए यह तय करना अदालतों के कार्य में नहीं है। राष्ट्रगान का अपमान नहीं हो रहा है यह सुनिश्चित करना एक बड़ी समस्या पैदा करेगा।
- ‘अदालतों की प्राथमिक जिम्मेदारी और अधिकार- क्षेत्र न्यायिक निर्णय है। न्यायिक निर्णयन में दशकों की देरी हो रही है और वे उन क्षेत्रो तक जा रहे हैं, जो उनसे संबंधित नहीं है।
- हालांकि, यह स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट ने देशभक्ति के नाम पर राष्ट्रवाद से संबंधित कुछ मजबूर किया है।