- “दक्षिण एशिया उपग्रह” या GSAT-09 दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) क्षेत्र के देशों द्वारा उपयोग के लिए भारत द्वारा निर्मित किया जा रहा है जो 5 मई 2017 को लांच हो गया।
- नेपाल में 2014 के सार्क शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधान मंत्री मोदी ने यह घोषणा की थी तथा पाकिस्तान को छोड़कर सभी सार्क देश इसमें शामिल हो गए।
- अपने पास अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम होने की बात कह कर पाकिस्तान प्रस्तावित ‘सार्क उपग्रह’ से बाहर निकल गया। इसलिए, इस परियोजना का नाम बदलकर सार्क उपग्रह के बजाय दक्षिण एशिया उपग्रह रखा गया ।
- GSAT -9 एक जियोस्टेशनरी कम्युनिकेशन सैटेलाइट है जिसका उद्देश्य दक्षिण एशियाई देशों के कवरेज के साथ कू- बैंड में विभिन्न संचार अनुप्रयोगों को उपलब्ध कराना है।
Read in English: All you need to know about the South Asia Satellite
- इस सैटेलाइट का वजन 2,230 किलोग्राम और इसकी लागत लगभग 235 करोड़ ₹ है जो भारत सरकार द्वारा निर्वहन किया जायेगा ।
- इसमें 12 कू-बैंड ट्रांसपोंडर हैं जोकि रेडियो सिग्नल के साथ एक संचार चैनल बनाने के लिए उपयोग किए जाने वाले उपकरण हैं तथा प्रत्येक देश को कम से कम एक ट्रांसपोंडर तक पहुंच प्राप्त होगी जिसके माध्यम से वो अपनी खुद की प्रोग्रामिंग बीम कर सकते हैं।
- प्रत्येक देश को अपना मूल आधारभूत ढांचा विकसित करना है तथा भारत सहायता प्रदान करने के लिए भी तैयार है।
- GSLV-F 09, GSLV की 11 वीं उड़ान है तथा स्वदेशी अपर स्टेज क्रायोजेनिक इंजन (सीयूएस) के साथ इसकी यह लगातार चौथी उड़ान है।
- आकृति– यह घन के आकर में है तथा एक केंद्रीय सिलेंडर के लगभग बनाया गया है।
- लॉन्च वाहन– GSLV MK-II
- लाभार्थी देश– नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, श्रीलंका और मालदीव।
- मिशन आयु– 12 वर्षों से अधिक।
- अनुप्रयोग– दूरसंचार, आपदा राहत, डीटीएच, टेली-शिक्षा, टेलीमेडिसिन और आपदा प्रबंधन के लिए समर्थित ।
- यह भाग लेने वाले देशों के मध्य सुरक्षित हॉट लाइन भी प्रदान कर सकता है जो भूकंप,चक्रवात,बाढ़ और सूनामी जैसे आपदाओं के प्रबंधन के मामले में उपयोगी होगा।