What is Triple Talaq?
- Triple Talaq is a practice in religion of Islam.
- The husband if pronounces the phrase “I divorce you” or “ṭalaq” in Arabic to his wife he can divorce her.
- A husband may divorce his wife three times taking her back two times.
- A man has to wait for a duration of 3 menstrual periods after pronouncing Ṭalaq either once or twice or thrice, before finally letting his wife leave.
- According to Quran if after the divorce if the couple decides to come back together, then there is no harm in doing so after the wife has married another man and has divorced him too.
- Another form of triple ṭalaq is saying, “I divorce you” three times in one sitting.
- Shia and Sunni Muslims have different rules for performing a ṭalaq divorce.
- According to Sunnis each ṭalaq utterance should be followed by a waiting period of three menstrual periods for women or three months.
- Shias on the other hand don’t have the concept of verbal “Triple Divorce” i.e. just uttering the phrase “I divorce you” three times but also requires two witnesses for the declaration of ṭalaq.
Petition of Shayara Bano
- Shayara Bano, a resident of Kashipur in Uttarakhand who was given instantaneous triple ṭalaq by her husband, approached the Supreme Court in February this year.
- She was also a victim of years of domestic violence.
- She filed a petition that challenged the long-standing practices of ṭalāq-e-bidat (instantaneous triple ṭalaq), nikah halala (prohibition on remarriage with the divorced husband without consummating marriage with another man) and polygamy.
- Her public interest litigation in the Supreme Court seeks a ban on the practice of triple talaq.
Islamic Perception
- The practice of triple ṭalaq at one sitting has been legally recognized historically and has been particularly practiced in Saudi Arabia.
- Although Muslim community do feel that it is a practice that denies females of basic gender equality but at the same time it is a holy practice and therefore its abolition does not stand robustly.
- It told the apex court that personal laws cannot be re-written in the name of reforms. The Uniform Civil Code is not enforceable by a court of law, the Muslim body maintained.
- The Muslim Personal Law Board (MLPB) also said it will boycott a Law Commission questionnaire on religious practices detrimental to women.
- It called the questionnaire – that seeks public opinion on backward religious practices – a ‘fraud’ and accused it of acting at the behest of the Centre.
Government’s Stand
- The government has said that triple ṭalaq violates the right to equality of women, as well as their dignity, and “has no place in a secular country”.
- Government’s logic lies in that since triple ṭalaq is not in practice in several Muslim countries and a number of Muslim women organisations have pressed for its abolition.
- The Union government has filed an affidavit that in-principle supports the petitioner’s demand for doing away with such practices.
- Responding to the AIMPLB’s charges, leaders of the BJP maintained that the UCC and triple ṭalaq were disparate issues and should in no way be treated as extensions of one another.
Subsequent scenarios
- The All India Muslim Personal Law Board (AIMPLB) slammed the government on its stand against triple ṭalaq.
- Lot of Muslims were completely against AIMPLB’s views on triple talaq, but even those Muslims did not agree for a common civil code and stood with the AIMPLB on that issue.
- AIMPLB interprets government’s stand as a conspiracy to implement a Uniform Civil Code (UCC) which according to them was against the very Constitution of India.
- Several opposition parties such as Samajwadi Party has also opposed the stand of Government in favour of abolition of the triple ṭalāq.
Conclusion
- Articles 14, 15, 21 and 25 deal with the right to equality before law, protection against discrimination on grounds of sex or religion, protection of life and personal liberty and freedom of religion respectively.
- Surely triple ṭalaq denies both equality and dignity of Muslim women as human beings and citizens of India and can have no place in the society.
- Under Islamic law, once a marriage is consummated, a wife has no right to divorce her husband without his permission, even though she may be cast out at will for any reason .
- Quran also grants equal rights to the husband and wife to pursue divorce proceedings and the right to equality guaranteed in the Indian Constitution
- But this has not stopped the practice; many Muslim women are unaware of the judgments or have had to accept such pronouncements owing to pressure from conservative sections.
- Many women have undergone severe trauma after being thrown out of their homes.
- Women’s rights groups in the Muslim world are waging an uphill battle to prevent governments from recognizing the triple ṭalaq – with some success in the more moderate countries.
- This practice has been either explicitly derecognised in Muslim-majority countries such as Indonesia, Iran and Tunisia or implicitly in countries such as Pakistan.
तीन तलाक (triple talaq) क्या है ??
- तीन तलाक (triple talaq) इस्लाम धर्म की एक प्रथा है |
- यदि पति ”मै तुम्हे तलाक देता हु ” या फिर अरबी में ”तलाक ‘ शब्द का उच्चारण अपने पत्नी के सामने करता है तो वह उसे तलाक दे सकता है |
- एक पति अपनी पत्नी को तीन बार तलाक (triple talaq) दे सकता है, अर्थात वो दो बार उसे दोबारा अपना सकता है |
- अपनी पत्नी को पूर्ण रूप से विच्छेद से पहले एवम तलाक की घोषणा से उस औरत के ३ माहवारी तक की प्रतीक्षा करना पति के लिए अनिवार्य होता है|
- कुरान के मुताबिक तलाक के बाद अगर दोनों दंपत्ति साथ आने का फैसला करे तो वो एकसाथ हो सकते है अगर उस महिला की दुसरे पुरुष से शादी हो गयी हो और तलाक भी हो गया हो |
- मौखिक रूप से तीन बार एकसाथ ”तलाक ” कह देने से भी विच्छेद करने की प्रथा है |
- शिया और सुन्नी मुसलमानो में तलाक के अलग-अलग नियम है|
- सुन्नी के अनुसार तलाक प्रक्रिया को संपन्न होने के लिए स्त्री के तीन माहवारी या तीन माह तक का इंतजार करना पड़ता है|
- वही शिया लोगो में मौखिक रूप से तीन बार तलाक के उच्चारण मात्र का कोई सिद्धांत ही नही है, इसके साथ दो गवाहों की उपस्थिति अनिवार्य है |
शायरा बानो की याचिका
- उत्तराखंड के काशीपुर की रहने वाली शायरा बानो को उसके पति ने तात्कालिक तलाक दिया था जिसका मामला इसी फरवरी में सुप्रीम कोर्ट में गया|
- वो वर्षो से घरेलु हिंसा से पीड़ित थी |
- बानो ने एक याचिका दायर कर लम्बे समय से चले आ रहे तलाक-ए-बिदत (तात्कालिक तीन तलाक ), निकाह हलाला और बहुविवाह को चुनौती दी |
- सुप्रीम कोर्ट में दायर उनकी जनहित याचिका तीन तलाक पर प्रतिबन्ध लगवाना चाहती है |
इस्लामी अनुभूति
- तीन तलाक की प्रथा को एक वैधानिक एवं ऐतिहासिक मान्यता प्राप्त है तथा सऊदी अरब के कुछ भागो में यह प्रचलित है |
- मुस्लिम समुदाय मानता है की यह प्रथा मुस्लिम स्त्रियों के लैंगिक समानता को इंकार करती है लेकिन साथ में ही यह एक पवित्र प्रथा है एवम इसका उन्मूलन नहीं होना चाहिए|
- यह सुप्रीम कोर्ट को बताता है की निजी कानून दोष निवारण के नाम पर दोबारा नहीं लिखे जा सकते है |
- समान नागरिक सहिंता को थोपा नहीं जा सकता |
- मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने ये भी कहा कि वे उस विधि आयोग के प्रश्नावली का त्याग करेंगे जो धार्मिक प्रथाओ के पक्ष में नहीं है |
- इस प्रश्नावली ने पिछड़े हुए धार्मिक प्रथाओ पर जनता की राय मांगी थी जिसे एक धोखाधड़ी बताया गया और कहा गया कि यह सब केंद्र की सरकार के इशारे पर हो रहा है |
सरकार का पक्ष
- सरकार यह कह चुकी है की तीन तलाक महिलाओ के समानता के अधिकार एवम उनकी प्रतिष्ठा पर आघात करता है इसलिए एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र में इसका कोई भी स्थान नहीं है |
- सरकार का तर्क है की, ‘तीन तलाक कुछ मुस्लिम राष्ट्रों में अब एक प्रथा नही है और ढेर सारे मुस्लिम महिलाओ के संस्थानों ने इसके उन्मूलन के लिए ज़ोर दिया है
- सरकार ने एक हलफनामा दायर किया है जिसमें याचिकाकर्ता की इस तरह की प्रथाओ को दूर करने की मांग के लिये समर्थन दिया गया |
- AIMPLB के जवाब मे BJP के नेताओ ने कहा की यूनिफार्म सिविल कोड और तीन तलाक दोनों अलग–अलग मुद्दे है, इनको किसी अन्य प्रकार से नहीं देखा जाना चाहिए |
बाद के कथानक
- सरकार के तीन तलाक के समर्थन में खड़े होने पर AIMPLB ने सरकार की खिंचाई की |
- बहुत सारे मुसलमान तीन तलाक के मुद्दे पर AIMPLB के खिलाफ थे, लेकिन फिर भी वो समान नागरिक सहिंता के खिलाफ में थे, और AIMPLB के साथ इस मुद्दे पर खड़े थे |
- AIMPLB ने इस मुद्दे पर सरकार के समर्थन को एक प्रकार का षड्यंत्र बताया और कहा की समान नागरिक सहिंता भारत के संविधान के खिलाफ है |
- कुछ विपक्षी दल जैसे समाजवादी पार्टी ने भी तीन तलाक के निवारण के मुद्दे पर सरकार का विरोध किया |
निष्कर्ष
- धारा १४,१५,२१,२५ कानून के समक्ष समानता का अधिकार, लिंग या धर्म के अधार पर भेदभाव के विरोध में सुरक्षा, जीवन एवम व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा तथा धार्मिक भावनाओ के सम्मान की व्यवस्था करता है |
- निश्चित रूप से तीन तलाक मुस्लिम महिलाओ के समानता एवम प्रतिष्ठा को नकारता है जिसका समाज में कोई स्थान नहीं रहना चाहिए|
- इस्लामी कानून के मुताबिक, एक बार जो विवाह हो जाये उसके बाद पत्नी को अपने पति की आज्ञा के बिना उसे तलाक देने का कोई अधिकार नहीं है भले ही कोई भी कारण हो |
- कुरान भी पति और पत्नी को तलाक के मुद्दे पर समानता का अधिकार देता है तथा भारतीय संविधान भी समानता के अधिकार की सुनिचितता तय करता है |
- लेकिन इन सबके बावजूद भी ये प्रथा रुकी नहीं, आज भी कुछ मुस्लिम महिलाये इस निर्णय के प्रति जागरूक नहीं है और रूढीवादियो के दबाव में इस तरह की राय को नही मानती |
- कुछ महिलाये तो अपने घरो से बहार फेंके जाने पर कई कुठाराघातो से गुजर चुकी है |
- मुस्लिम राष्ट्रों की महिला अधिकारों की बात करने वाले कुछ समूहों ने तीन तलाक को मान्यता देने के खिलाफ एक कठिन युद्ध छेड़ रखा है जिसमे से कुछ देशो में सफलता भी प्राप्त की है |
- मुस्लिम बाहुल कुछ देशो जैसे इंडोनेशिया,ईरान,ट्यूनीशिया, पाकिस्तान ने triple talaq की मान्यता को पूर्णता रद्द कर दिया है|